तुम्हें पाना है नामुमकिन
फिर भी दिल ये कहे।
जिन्दा तो हैं हम लेकिन
बेजान बुत बन के रहे।
ख्वाहिशें भी बिखर गईं
जमीं पे आईने की तरह
हाथ हो गए जख्मी मगर
हम टुकड़ों को उठाते रहे।
लिखे थे जो मिलकर हमने
नाम चाहत की दीवारों पर
दरक रहे आज भी बेबस वो
अश्कों की लहर में बह रहे।
देखते हम रहे मजबूर हो
ढहते हुए आशियाने को
नहीं कुछ तुम भी कर पाये
नहीं कुछ हम भी कर सके।
वैभव”विशेष”