Homeअज्ञात कविचमचागीरी-107 चमचागीरी-107 budhpal अज्ञात कवि 28/06/2015 No Comments चमचे को चमचा कहो चमचा जाता रूठ; धीरे-धीरे जान ले चमचागीरी की लूट. Tweet Pin It Related Posts बारीस की पहली फुहार ऑडी कुकर्मो का फल – बी पी शर्मा बिन्दु About The Author budhpal मैं ३९ वर्षों की नौकरी में हर जगह चमचों से पीड़ित व्यथित व्यक्ति रहा हूँ. Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.