रात आओ पास मेरे
चाँदनी अब बुझ गयी है..
सेज फूलो की जो सजी थी
हाय निर्लज्ज सो गयी है
रात आओ पास मेरे ..
उस गजरे की चमक से
पायलों की छन-छनक से
दूर धड़कन खो गयी है
रात आओ पास मेरे
अविराम देखो ये समय है
अभिराम सा जो दृष्टिमय है
पास आकर छुप गयी है
रात आओ पास मेरे
शांत सा घनघोर भी
वो चपल , चितचोर भी
दूर से जो हंस रही है
रात आओ पास मेरे
तेज़ कौंधन अब ह्रदय की
पास में बैठी विरह को
हाय सच में रो रही है
रात आओ पास मेरे
कुछ नया है कुछ पुराना
ये मेरा है आशियाना
क्यूँ तू ऐसे चुप रही है
रात आओ पास मेरे..
सुंदर रचना।।
धन्यवाद…