Homeअज्ञात कविचमचागीरी-88 चमचागीरी-88 budhpal अज्ञात कवि 16/06/2015 No Comments चमचे असंभव को संभव कर सकते हैं; अपनी पे उतर आएं तो आसमान में छेद कर सकते हैं. Tweet Pin It Related Posts पर्यावरण के दुश्मन हम ek mulaqat अमर गाथा – बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा – बिन्दु About The Author budhpal मैं ३९ वर्षों की नौकरी में हर जगह चमचों से पीड़ित व्यथित व्यक्ति रहा हूँ. Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.