Homeअज्ञात कविचमचागीरी-80 चमचागीरी-80 budhpal अज्ञात कवि 14/06/2015 No Comments नौकरी में हम बहुत दुखी होते हैं फिर भी कलेजा दबाये रहते हैं; चमचे नौकरी न छीन लें कहीं इसी डर से दिल को बहलाये रहते हैं. Tweet Pin It Related Posts पैसा – बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा – बिन्दु मन का विश्वास – बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा – बिन्दु बसंत सा प्यार – मनुराज वार्ष्णेय About The Author budhpal मैं ३९ वर्षों की नौकरी में हर जगह चमचों से पीड़ित व्यथित व्यक्ति रहा हूँ. Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.