ज़िंदगी, एक चलचित्र
जहाँ हर कोई अदाकार
निभा रहा है अपना किरदार
कभी मिलती तालिया
तो कभी बस तिरस्कार
रोते हुए से हँसना,
पल भर में रोना,
अपनी पटकथा का हर रोज आंकलन करना,
कई बार ऐसा लगता जैसे, हम ही हो, लेखकार
परन्तु पल में भ्रम का ज्ञान हो जाता,
हमें हर रोज एक नया किरदार मिल जाता,
रोज पर्दा गिरता, रोज उसका उठना,
जीवन का यही एक सार,
हर कोई निभा रहा है यहाँ भूमिका,
रिश्तों के पीछे भी छुपाई गयी एक वजह,
शब्द शब्द से बना संवाद,
ज़िंदगी, एक चलचित्र
जहाँ हर कोई अदाकार
निभा रहा है अपना किरदार
चंद्रकान्त जी, आप ने वास्तव में ‘जीवन का सार ‘ प्रस्तुत कर दिया ! Congrats .
bimladhillon जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद. मेरे जिससे एक लेखक के लिए ये शब्द बहुत माइने रखते हैं.धन्यवाद