अतीत के पन्ने पलटता हूँ,
तो कुछ ख्वाब,
कुछ दर्द,
कुछ सपने,
कुछ गलतियाँ,
अचानक जीवंत हो उठते है।
चहकने लगता है,
बचपन अचानक
अतीत के आँगन में।
मामा का खेत,
लू संग उड़ती गरम रेत,
वो पीपल की छांव,
बिन चप्पलों
रेत में जलते पांव।
गली वाला पिल्ला,
रेत का वो टीला,
कमर में नेकर ढीला।
गुरुजी की वो डांट,
पीपलगट्टे वाली पानी की माट,
खेजड़ी तले पड़ी
दादाजी की खाट।
सब अचानक उभर आते है,
पल जीवन के ठहर जाते है,
आपाधापी में कटता जीवन,
जीवन फिर से जी लूं थोड़ा,
अतीत से अमृत पी लूं थोड़ा,
अतीत से अमृत पी लूं थोड़ा।।
Manoj charan “Kumar”
Mo. 9414582964
बहुत बढिया मनोज जी । अचछा प्रयास है अतीत के सागर मे ढकेलने का । इसी तरह क़लम की सेवा देते रहें ।माँ सरस्वती की कृपा बनी रहे ।
thanks. hemchandrji .