अँधेरा उजाला है जीवन के हिस्से
उन्ही से लाया हु कुछ आज किस्से
चलो एक बार लेके चलता हु तुमको
मेरे बचपन के सपनो मे, कुछ खास अपनों मे
वो चंचल से मन मे, वो एक पागलपन मे
लोरी वो माँ की, नदिया के छनछन मे
हरदम था खोया ख्वाबो के वन मे
अधपके अमिया मे पत्थर बरसाना,
नीबू को छीलकर दोस्तों को तरसाना
झींगुर के छत्ते पे गुदगुदी कर जाना
क्रिकेट के लिए रोज बहाने बनाना
जंगल मे जाकर बासुरी बजाना
मिलाकर सामान पुरी पकाना
तुम रोज दिल मे रहते हो अक्सर
छुपो कभी तो मे ढुंढू बहाना
इस रंगीन कागज़ ने सब लूट डाला
क्यों बिखेरी यु मेरी, जो पिरोई थी माला
सोचा कुछ बजूद अपना भी होगा
शायद वो सिर्फ एक सपना ही होगा
Sunder panktiya, wo kahte the ki sapna Chu chu tha………