तेरी भरोसे पर जिया जाये कब तलक
सब्र की भी हद है किया जाये कब तलक
सिर्फ वफा के बदले सजा मिली है ये मुझे
तुम तक खयालों का काफिला जाये कब तलक
मुसाफिर लौटकर न आयेंगें ये जाने वाले
उस राह में पलके बिछाएं कब तलक
कभी जो जंग होगी निगाहों की तकरार मेें
सामने है तो नजरे चुराये कब तलक
रिस्ता-ए-उल्फतें पाक में काफिर तुम हुए
और हम खुशियां लुटाये कब तलक
ये माना की माहिर हूँ नसीबों के खेल में
इस बात पर हम बातें बनायें कब तलक
इश्क आग का दरिया है तो क्या हुआ
हम इस आग में खुद को जलायें कब तलक
Sir i want to publish my poems….how can u send my writting