ये कैसी दिल लगाने की सजा पाये
पलक भीगी रही, ना मुस्कुरा पाये
ख्वाबों का जख़ीरा था मेरे मन में
खुद ही हम ना ख्वाबो को सजा पायें
फासले पे मैं रहा व फासले पे वो रही
न वो घटा पाई ना हम घटा पाये
कोशिशें थी कोशिशों के हद से भी आगे
ये तकदीर थी कभी ना हम मिटा पाये
तसब्बुर फर्श पे थे बिखरे हुए लेकिन
देख तो पाये मगर ना हम उठा पाये
हारकर अगले जनम की आश ले बैठे
मिलेगें हम दोबारा पर ये ना बता पाये
एक दीया जलता हुआ मैं छोड़ जाता हूं
देखना ये नीशानी कोई भी ना बुझा पाये