- रह रहकर टूटता रब का कहर
खंडहरों में तब्दील होते शहर
सिहर उठता है बदन
देख आतंक की लहर
आघात से पहली उबरे नहीं
तभी होता प्रहार ठहर ठहरकैसी उसकी लीला है
ये कैसा उमड़ा प्रकति का क्रोध
विनाश लीला कर
क्यों झुंझलाकर करे प्रकट रोषअपराधी जब अपराध करे
सजा फिर उसकी सबको क्यों मिले
पापी बैठे दरबारों में
जनमानष को पीड़ा का इनाम मिलेहुआ अत्याचार अविरल
इस जगत जननी पर पहर – पहर
कितना सहती, रखती संयम
आवरण पर निश दिन पड़ता जहरहुई जो प्रकति संग छेड़छाड़
उसका पुरस्कार हमको पाना होगा
लेकर सीख आपदाओ से
अब तो दुनिया को संभल जाना होगाकर क्षमायाचना धरा से
पश्चाताप की उठानी होगी लहर
शायद कर सके हर्षित
जगपालक को, रोक सके जो वो कहरबहुत हो चुकी अब तबाही
बहुत उजड़े घरबार,शहर
कुछ तो करम करो ऐ ईश
अब न ढहाओ तुम कहर !!
अब न ढहाओ तुम कहर !!
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धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ…..!!!!
sundar rachna….
कुछ तो करम करो ऐ ईश
अब न ढहाओ तुम कहर !!
Thanks Dear
वआह क्या भाव हैं….क्या पुकार है अंतर्मन की….आज के परिपेक्ष में यह और भी ज़रूरी है की हम अपनी कुदरती सम्पदा की बचाएँ…आने वाली पीढ़ी को जीवन दें न की पल पल मरता जीवन….अगर नहीं जल्दी संभले तो प्रकीर्ति अपना रूप दिखा देगी…अंतःकरण से आह्वान करती लाजवाब रचना….शब्द नहीं मेरे पास इससे ऊपर….दुआ है मेरी की आपकी रचना के माध्यम से जो पुकार निकली है….हर हिर्दय तक पहुंचे….तथा अस्तु…
और एक बात…जितनी अमूल्ये रचना है…प्रतिकिर्या…नगण्य…आप की “कवि महोदय” याद आ जाती है बरबस ही…क्या करूं…ऐसे लगता वो कविता की रचना ही इन्ही नगण्य कविओं को ले कर हुई है…और आपने और कविओं की रचनाओं में प्रतिकिर्या स्वरूप अक्सर उनसे गुज़ारिश की है कि और कविओं की रचना पर भी प्रतिकिर्या दिया करें….यह अतिश्योक्ति नहीं है सच है की आप जैसी साकारात्मक… प्रोत्साहन भरी सोच हर किसी में नहीं होती….सलाम है आपको…आपकी सोच को…
बब्बू जी किन शब्दों में आपकी प्रशंशा करू …..मेरे पास पर्याप्त शब्द नहीं….. नमन की आपने की आपने इस आपाधापी के युग में अपना बेशकीमती समय निकाल कर रचना को गहनता से अध्ययन कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त किये !!
कोटि कोटि नमन आपको एवं अबद्ध कंठ से आपका धन्यवाद एवं आभार !!