इन होंठो के शबनम को
मुझे होंठो से छू लेने दो
मधुशाला या मदिरा क्या जानुँ
प्यासा हूँ मुझको बस पी लेने दो
मनहर सा रूप है जैसे चंदनवन
जैसे निःश्छल दमक रहा हो कोई दर्पण
तेरे नख शिख का याचक हूँ मैं
अपने आलिंगन में सो लेने दो
रात घनी है बहुत थका हूँ
मन की अभिलाषा हेतु रूका हूँ
अपने बाहुँपाश में ले लो हमको
जुल्फों के गलियारों में खो लेने दो
देख रहा हूँ तुम तनहा हो बिल्कुल
जीवन कोरा अक्षर सा खाली है
इस पर मेरा हस्ताक्षर होने दो
ढाई अक्षर अंकित कर लेने दो
मन मदहोश हुआ जाए पल पल
मोम के जैसा बिखरा जाए घुलकर
तृप्ति का दीया बूझा जाता है
चलो अपनी आगोश में सो लेने दो
बरसा दो प्रेम की बरखा रिमझिम
मद में झूम झूम तर हो जाऊ
सावन का मौसम आया है
बौछारों में तनमन को भिगो लेने दो
बादल टकराएं है बिजली कड़की है
एक दूजे के गात में चिंगारी भड़की है
समाप्त हुई है जब दूरी सारी जो थी
अब होना है जो कुछ भी हो जाने दो ।
आप मेरे जॅसे कियु हो
bahut khoob…sanjay ji
घनश्याम सिंंह जी आभार ,जो आपने मुझे इस काबिल समझा
बहुत बहुत शुक्रिया वैभव जी