Homeअज्ञात कविचमचागीरी-55 चमचागीरी-55 budhpal अज्ञात कवि 09/05/2015 No Comments जब होता है नाक में दम और सबके दिल घबराते हैं; दुनिया में हर जगह चमचे-ही-चमचे नजर आते हैं. Tweet Pin It Related Posts सक – बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा – बिन्दु ध्वनि (प्रार्थना मुक्ति का द्वार) A Prayer Path Of Liberation वे लोग – आलोक पान्डेय About The Author budhpal मैं ३९ वर्षों की नौकरी में हर जगह चमचों से पीड़ित व्यथित व्यक्ति रहा हूँ. Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.