खिलते हुए फूल को
बहुत प्यार मिलता है।
जो गिर गए जमीं पे उन्हें
तिरस्कार मिलता है।
बड़ी मतलब परस्त है दुनिया
जो जज्बातों से खेलती है।
जिसके दर्द से है अजनबी
उसी की महफ़िल में झूमती है।
फूलों को भी कभी काँटों
सा व्यवहार मिलता है।
जो गिर गए जमीं पे उन्हें
तिरस्कार मिलता है।
क्यूँ भूल गए कि इसी फूल
का बीज कभी अंकुरित होगा।
मिलकर माटी में ओस की बूंदों
से कभी प्रस्फुटरित होगा।
फिर उन्हीं फूलों का कितने
गले में हार मिलता है।
जो गिर गए जमीं पे उन्हें क्यूँ
तिरस्कार मिलता है?
वैभव”विशेष”
मिलकर माटी में ओस की बूंदों
से कभी प्रस्फुटरित होगा।
NICE G
dhanyvad…
Excellent !!
Regards
Dr.manoj SHARMA