वो समां था सुहाना ….
जब मैं बन गया था…
बैठी हुई बस में एक ख़ूबसूरत हसीना का दीवाना ….
दिल लगी हो गयी थी मुझे पल भर में …
चढ़ा हुआ था मुझपर प्यार का परवाना ….
वो समां था सुहाना ….
उसकी वो झुकी नज़रें और कातिल अदाएं …
ख़ुदा ने दिया था उसे रूप भी मस्ताना ….
जब वो किसी से बातें करती …
तो लगता था बज रहा हो मधुर गीत का तराना ….
वो समां था सुहाना …..
हिम्मत नहीं थी मोह्हबत -ए-इश्क़ इज़हार की …
इंतज़ार था मुझे उसके निगाह -ए -गुलज़ार की …
फीकी पड़ गई थी सूरज की किरणें और चांदनी रात ..
बस करना था उससे एक बार इश्क़ -ए -मुलाकात ….
वो समां था सुहाना …..
सामने बैठी थी वो मेरे पर फिर भी ..
दिल पूछता था ये है हक़ीक़त या है कोई ख्वाब …
पलभर की एक तरफ़ा मुलाकात थी ..
लेकिन वो इश्क़ -ए-मुलाकात थी बड़ी लाजवाब …
वो समां था सुहाना ….
कमबख्त मेरी किस्मत भी साथ नहीं थी मेरे ….
अंत में सोचा बस नाम -ए -फरमान से शुरूआत करूँ अभी..
पूछने ही वाला था तब तक वो बस से उतर गई …
क्यूंकि उसका बस स्टॉप था आ गया था तभी ….
वो समां था सुहाना ………..
(अंकिता आशू)
छूने वाला लम्हा
Asp ki sabhi kavitayen bahut achhi hai
dhanywad