Homeगंगाधर ढोकेभरोसा भरोसा गंगाधर ढोके गंगाधर ढोके 24/04/2015 No Comments भरोसा अभी जबकि नहीं आयी हो तुम तुम्हारे आने की आहट भर से महकने लगा है घर जाते जवाते अपनी नाजुक नरम हथेलियों से तुमने घर नहीं भरोसा सौंपा था जिसे मैनें रखा है कायम। चाहता हूँ बचा रहे दुनिया में भी चुटकी भर नमक गंगाधर ढोके Tweet Pin It Related Posts प्रेम हर कोई अपने हैं जिन दरख्तों की गहरी जड़े हैं About The Author गंगाधर ढोके Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.