Homeअज्ञात कविचमचागीरी-28 चमचागीरी-28 budhpal अज्ञात कवि 23/04/2015 No Comments हम को फुर्सत नहीं मिलती अपना गम सुनाने को; कियूं कि चमचे लगे रहते हैं अपने नंबर बनाने को. Tweet Pin It Related Posts जल रहा हैं हिन्दुस्तान एक जमीं कोई नया आसमाँ भी हो – राकेश आर्यन सावन के गीत About The Author budhpal मैं ३९ वर्षों की नौकरी में हर जगह चमचों से पीड़ित व्यथित व्यक्ति रहा हूँ. Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.