Homeअज्ञात कविचमचागीरी-27 चमचागीरी-27 budhpal अज्ञात कवि 23/04/2015 No Comments न आप ने समझा है न हम ने यह जाना है ; चमचों के ही कदमों में झुकता यह ज़माना है. Tweet Pin It Related Posts हमे पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे है. “तुम मुख़ातिब डूब गया दिन About The Author budhpal मैं ३९ वर्षों की नौकरी में हर जगह चमचों से पीड़ित व्यथित व्यक्ति रहा हूँ. Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.