Homeअज्ञात कविचमचागिरी-12 चमचागिरी-12 budhpal अज्ञात कवि 19/04/2015 No Comments जब भी कभी बॉस के कान खुले और आँखें बंद होते है; चमचों के मुंह खुले और हौसले बुलंद होते हैं. Tweet Pin It Related Posts निर्भरता – बी पी शर्मा बिन्दु गरमी..(हायकू) –मधु तिवारी चमचागीरी-88 About The Author budhpal मैं ३९ वर्षों की नौकरी में हर जगह चमचों से पीड़ित व्यथित व्यक्ति रहा हूँ. Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.