आज मेरा जन्म हुआ
कुछ आँखों में चमक
कुछ आँखों में कसक
अपना प्रतिरूप देखकर
मातृत्व को अपार हर्ष।
किसी ने उठाया मुझे
पुनः रख दिया धरा पर
शायद बोझ कुछ ज्यादा है।
समय चक्र थमा नहीं
सब बदलने लगा
मेरा रूप,आकार
गगन छूने को आतुर
मेरा मन,मेरा तन
जिजीविषा जागृत हुई।
उड़ान भर ली मैंने
लगन का प्रत्यक्ष प्रमाण।
बोझ समझने वाले
कह रहे पुष्प मुझे
क्यूँ क्या अब मेरा
वजन कम हो गया?
नहीं,लोगों को मुझे
देखने के लिए अपनी
गर्दन उठानी पड़ रही
और आँखे झुकानी।
मगर उनका क्या ?
जिनकी सिसकियाँ
आज भी कैद हैं
ढकोसली मान्यताओं
की दीवारों में।
अब तो बदलो
मिथक विचारों को।
न डरी सहमी
स्वयं में सिमटी हुई
कोई ओस की बूँद
गिर जाये धरा पर
और मिल जाए
धूल में,खो दे
अपना आस्तित्व।
वैभव”विशेष”
very nice dubey g