मैं लेखक नहीं पर लिख रहा हूँ
मैं फल नहीं पर सड़ रहा हूँ
मैं गुलाम नहीं पर गुलामी कर रहा हूँ
मैं डरपोक नहीं पर डर रहा हूँ
मैं सलाखों में नहीं पर आजादी के
लिए तरस रहा हूँ
ये दर्द है मेरी जिंदगी का इसे झुटला न देना
ये सत्य है मेरी जिंदगी का इसे ठुकरा न देना
ये सत्य है मेरी जिंदगी का इसे ठुकरा न देना
“शरद भारद्वाज”
इस दर्द को कोई समझ नहीं सकता