Homeअज्ञात कविचमचागिरी-५ चमचागिरी-५ budhpal अज्ञात कवि 19/04/2015 No Comments काश दुनिया के सारे चमचे मर जाते, हमारे देश के हालात तो सुधर जाते : जो थोड़े से चमचे बच जाते, कुछ इधर कुछ उधर दौड़ा दिए जाते. Tweet Pin It Related Posts मैं क्यों ना दूँ गाली चमचागीर-100 यादों की मुलाक़ात-ऋषि के.सी. About The Author budhpal मैं ३९ वर्षों की नौकरी में हर जगह चमचों से पीड़ित व्यथित व्यक्ति रहा हूँ. Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.