इतिहास के पन्नो में लिपटी
कीमत एक सम्मान की
ये गाथा है चन्द्रवर्दाई की
और पृथ्वीराज चौहान की
पृथ्वीराज राशो का रचिया
कवि, गुप्तचर, ज्योतिष था
चन्द्रवर्दाई नाम था जिसका
वफादार वीर अलौकिक था
दिल्ली से कन्नौज तक
चौहान का झंडा लहराता था
धनुष ,कृपाण का पंडित
सबको मार भगाता था
एक काल पैदा हुए
चन्द्रवर्दाई और चौहान
गुणों के बल पर जीता
राजदरबारों का सम्मान
जयचंद कन्नौज का राजा
को चौहान ना भाता था
ऊपर से उसकी लड़की का दिल
चौहान को बहुत चाहता था
उठाया स्वयंबर से उसको
बहुत बड़ा बवाल किया
वीर ,राश ,माधुर्ये लिखकर
राशो में कमाल किया
एक बार नहीं १२ बार
मुहँ की बड़ी खानी पड़ी
गौरी के संग जयचंद को भी
गर्दन अपनी झुकानी पड़ी
एक दिन षड्यंत्र ने सरेआम
वफ़ा को पछाड़ दिया
ले गया चौहान को गज़नी
आाँखो में सरिया गाड़ दिया
बेटे को सौंप कर राशो
निकल पड़े चन्द्रवर्दाई
भूख प्याश गज़नी तक
देशभक्ति को ना रोक पाई
पहुँच कर गज़नी उन्होंने
भारत का ज्ञान जता दिया
ज्योतिष ,जादू ,सूर्ये ग्रहण
अनपढ़ गौरी को दिखा दिया
विश्वाश जीता गौरी का
अब जीतना था मुकाम
साथी धुरंधरों के बीच
नहीं दिखे उन्हें चौहान
रात के काले साये में
वो ढूंढ रहे थे चौहान को
बन्दीगृह से हाथ निकला
पकड़ा उनके पावँ को
आँखे फोड़ दी थी उसकी
बारह बार जिसने माफ़ किया
भागूँगा नहीं मै बदला लूँगा
चौहान ने ये साफ़ किया
उकसाया बहुत गौरी को
किया प्रतियोगिता का आव्हान
परीक्षा थी हुनर की
मेहनत का था अंजाम
चार बांस चौबीश गज़
अंगुल अष्ट प्रमाण
तां पर राजा है बैठा
मत चुको चौहान
उठाया धनुष उस प्रतापी ने
बीते दिनों को याद किया
चीख भी न पाया गौरी
तीर गले के पार किया
शत शत मेरा नमन है तुमको
हे देश पर मिटने वालो
दोस्ती और सम्मान की खातिर
गर्दन सूली पर रखने वालो
बहुत अच्छे।।
कुछ पंक्तियों में
पूरा इतिहास लिख दिया।
Beautiful poem sir bohat bohat Shukriya…. Jay Jay PrithviRaj chauhan
Jai Pithora Jai Maa Bhwani