अध्यात्म बना व्यापार
चन्दे से भरे भण्डार
सोने के छतर के आगे
सोते हैं भूखे लाचार
रूढ़ि इन पढ़े लिखों को
जगाना बहुत है
पर अभी मुस्कुराना बहुत है
नंगे फैशन का है दौर
पाश्चात्य पर पूरा जोर
सादगी अभीशाप हो गई
भौड़े बन गये चित्तचोर
आर्यवर्त की संस्कृति को
उठाना बहुत है
पर अभी मुस्कुराना बहुत है