लूटी हुई आबो हवा को
फिर से लाना बहुत है
जीना है कठिन बहुत
पर मुस्कुराना बहुत है
घुटकर मर रहा है किसान
तू धन छिपाने में परेशान
छत बनी उसकी आशमान
बिखरे बच्चों के अरमान
कुबड़े खेतों में अभी
हल चलाना बहुत है
पर मुस्कुराना बहुत है
प्रताड़ित करते हैं नारी
राज कर रहे दुराचारी
रसूक संग टर्राते है
लज्जाहीन व्यभिचारी
शासन का धंधा यहाँ
मनमाना बहुत है
पर मुस्कुराना बहुत है
भटक रहे हैं युवा नादान
कुंठित, नशायुक्त जवान
उदण्ड ,दिशाहीन मुकाम
गुरु और ये जग परेशान
भारत की जवानी को
समझाना बहुत है
पर मुस्कुराना बहुत है
विधामंदिर बने दुकान
आदर्शो का खड़ा शमशान
मतलबी हुई कोशिशें
मशीन बन गया है इंशान
ज्ञान के दीये अभी
जलाना बहुत है
पर मुस्कुराना बहुत है
आला शीर्ष पर अधिकारी
शोषण करने की बीमारी
भेद भाव भाईचारे में पिसते
निर्धन की ये बड़ी लाचारी
सभी को फिर से
गले लगाना बहुत है
पर मुस्कुराना बहुत है
माता पिता का सम्मान
भारत माता का गुणगान
अपनी माटी अपना मान
जवान जो देश पर कुर्बान
इनके सजदे में सिर
झुकाना बहुत है
पर अभी मुस्कुराना बहुत है
चाहत चमकती तलवार
रंग भेद ने किया शिकार
गुणी काला हीन रह गया
गौरे में ही बस शिष्टाचार
नस्लभेद दुनिया से
अभी हटाना बहुत है
पर मुस्कुराना बहुत है…………….
क्या कशिश डाली है शब्दों में, बहुत उम्दा !!
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
हृदय को स्पर्श करते शब्द।।
वाह।।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका