क्यु तन्हाइ मे अक्सर तु याद आती है
दुर रह कर मुझमे तु समा जाती है
जख्म जितने है मेरे दिल पर
यादे बनकर उन पर तु मरहम लगा जाती है
रोता हु अक्सर जब रातो मे मै
रोते रोते क्यु तु मुझको हसा जाती है
फिरता हु यु ही जब राहो मे मै
क्यु तु मन्जील बन कर तु नजर आती है
खोया रहता हु मै जब यादो मे तो
क्यु ख्वाब बन कर तु इतना मुझे तडपाती है
अक्सर नाम लेता हु खुदा क मै
लब्ज बन कर जुबा से तु निकल आती है
जब लेती है मौत मुझको आगोश मे
जीन्दगी तेरी शक्ल बन कर मुझे नजर आती है