एक प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार प्राप्त रचना।
मैं हूँ निजी स्कूल है मेरी तानाशाही।
बस्ते,ड्रेस,किताबें सब पे करूँ उगाही।
एक बर्ष में कई आयोजन करवाता हूँ मैं।
पिकनिक तो कभी मैंगो डे मनवाता हूँ मैं।
अभिभावक का पेट काट,करूँ खूब कमाई।
मैं हूँ निजी स्कूल है मेरी तानाशाही।
शिक्षा विभाग के सभी नियम ताक पे रख डाले
नेताजी भी कुर्सी के संग-संग मुझे सम्हालें।
दोष नहीं मेरा,चंदे की राशि पहुंचाई।
मैं हूँ निजी स्कूल है मेरी तानाशाही।
सरकारी स्कूल दिखाते बाबा जी का ठुल्लू।
तभी तो अभिभावकों को मैं बना रहा उल्लू।
अध्यापक हुए नदारद कैसे हो पढ़ाई?
मैं हूँ निजी स्कूल है मेरी तानाशाही।
निज विशेष किताबें छपवाते,ज्यादा मूल्य वसूलते।
इसी के दम पर मेरे बच्चे विदेश में पलते।
अंग्रेजी पढ़ मातृ भाषा हिंदी ही भुलाई।
मैं हूँ निजी स्कूल है मेरी तानाशाही।
ऐसा भी नहीं कि लोग मेरा विरोध नहीं कर पाते।
बस बच्चों के भविष्य की खातिर वो चुप हो जाते।
विफल करूँ सब प्रयास ऐसी नीति बनाई।
मैं हूँ निजी स्कूल है मेरी तानाशाही।
वैभव”विशेष”
बहुत अच्छे
धन्यवाद ।।।
उम्दा लिखा है