तिजोरियां भी आजकल
बहुत छोटी होने लगी
छुपाने के लिए बैचैन
क्या क्या भरता फिरता है
नियत और तृषणंगी है
की पूरी होती नहीं
बड़ा भूखा है हैवान
बिन चबाये ही निगलता है
हैरान हूँ बहुत इतनी
मासूमियत देख कर
जाने एक इंशान कैसे
इतने रंग बदलता है
अब तक काबिज हूँ
खुदा का रहमों करम
सामने से वरना सीधे
खंजर दिल उतरता है
हैरान हूँ बहुत इतनी
मासूमियत देख कर
जाने एक इंशान कैसे
इतने रंग बदलता है।
Nice lines…