मेरे वतन की रीत निराली
जहां सड़को पे भगवान बिकता है
इन्सनियत का कोई मोल नहीं
यहां वस्तुओ की तरह वर बिकता है
क्या कहिये सोच मेरे समाज की
हर घर में नजारा खूब दिखता है
बेटे की लिए बजते ढोल नगाड़े
बेटी के नाम सन्नाटा मिलता है
रस्मो रिवाज़ की रीती पुरानी
शादी के नाम तमाशा अजब दिखता है
दुल्हन बनी एक उपहार की वस्तु
लाखो करोडो की कीमत में दूल्हा मिलता है
क्या खूब हमने प्रथा चलायी
दे कन्या को दान बाप जीवनभर गुलाम बनता है
कोई खुश होता पाकर मुफ्त में दौलत
किसी का दहेज़ के नाम पर घर बिकता है
कोई लेने में शान समझता है
कोई देने में शान समझता है
झूठी शान के लिए सब चक्कर चलता है
दिखावे की इस दुनिया में हर इंसान पिस्ता है
कीमत का बिल्ला चस्पा कर
देखो सरे बाजार नर बिकता है
लालच खोरो को इस मंडी में
वस्तुओ की तरह वर बिकता है -2
!
!
!
डी. के. निवातियाँ [email protected]@@
दिखावे की इस दुनिया में हर इंसान पिस्ता है
NICE
thanks rakesh kumar Ji,.