उसे पाने कि चाहत है मुझे खोने कि आदत है
वफा मेरी चाहत थी बेवफाइ उसकी आदत है
बारात आयी जब उसकी तब मेरा हाल मत पूछो
मानो बुझते दीये को दो बुन्द तेल कि चाहत है
जो दो बुन्द मिल जाता तो खुदा कौन सी आफत है
मुझे उसकी इनायत है शायद तुझे ये शिकायत है
टूटा है दिल मेरा तो इसको तु टुट जाने दे
ना वो मोहब्बत के लायक थी ना तु इबादत के काबील है
पता है एक दिन मुझको भी मर के तेरे दर पे आना है
जिन्दगि मे जो तुने दिये ठोकर मुझको वो खाना है
ठोकर है तो सही तु मुझको ठोकर खाने दे
ना उसको शक्ल दिखानी है ना तेरे पास आना है
Very Good Poems
धन्यवाद