है कौन जो विकल वेदना के पतझड़ को
मधुमास देता
विखर गये हों पतझड़ के पत्तों के मानिंद
सपने जीवन के जिसके
उस विटप को कौन फिर
जीने की नई आस देता
काल ही वह चक्र है
जो एक पल के लिए भी
रुक नहीं सकता कभी
छल कपट के बल पर जो
झुक नहीं सकता कभी
फिर क्यों देखते हैं हम सभी
वक्त के उस रूप को
जो छीन लेता सुख चैन अपने
क्रूर हाथों से कभी
दुःख की जब अनुभूति होती
दृगों से जब अंश्रु बहते
वक़्त से ही हमारे
गहन दुखों के घाव भरते
आज जो रो रहा है
वक़्त पल मैं उसे भी हंसा देता
दुखों के उन छणों को
सहज गति से भुला देता
पहचानता है जो गति वक़्त की
पहचानता है वक़्त उसको
दुखों की आंधियों में भी
भव सिन्धु से भी पार करता वक़्त उसको
ओमप्रकाश प्रकाश चमोला
अध्यापक
वक्त पर ओमप्रकास जी की रचना के लिए बधाई !
मेरी एक रचना के आंशिक झलक प्रस्तुत -=
“वक्त”=
वक्त !वक्त छोड़ता नहीं किसी को
मोड़ देता है शालार ,जी रहे जवानों को |
तोड़ देता है मद भरे इंसानों को
फोड़ देता अहम लिए हैवानों को |
वक्त नें कंस का
विनाश कर ही छोड़ा !
वक्त ने सपरिजन
रावण को ….
वक्त ही है आज जो
शाश्वत क्र वेद से जोड़ा |
वक्त का दबाव
विश्वामित्र हुए चंचल |..
वक्त ऋषि मुनियों को
भी नहीं छोड़ा |
वक्त ने व्रह्मा को
प्रभु की तरफ मोड़ा |……