।।कविता।।होली में।।
फिर आज गुलालों के खातिर
बदरंग बनेगे होली में ।
अंग अंग पर रंग सजा
हुड़दंग करेगे होली में ।।
न जानेगे कितने रंग नये
चेहरों पर खिल जायेगे ।
न जाने कितने टूटेंगे
कितने दिल जुड़ जायेगे
कितनो को तो तन्हा आकर
तंग करेगे होली में
अंग अंग पर रंग सजा
हुड़दंग करेगे होली मे।।2।
कुछ नये मुबारक आयेगे
चाहत में रंग लाने को
कुछ दूर बहुत हो जायेगे
यादो में तड़पाने को
भींग किसी की बारिस में
कुछ दंग करेगे होली में
अंग अंग पर रंग सजा
हुड़दंग करेगे होली में ।।3।।
क्या सच्चा है इस जीवन में
रंग कौन सा झूठा है
पर प्यार में दिल से न खेलें
इस प्यार का रंग अनूठा है
कुछ आँशू भी तो बरसेंगे
बेरंग बहेंगे होली में
अंग अंग पर रंग सजा
हुड़दंग करेगे होली मेँ।।4।।
।।होली मुबारक।।