मैं नारी अपनी वृथा, कहती हूँ अपनी कथा |
समाज के झंझालों से, अपमान के उन गलियारों से,
हर पल मुझको आना-जाना है, स्वाभिमान को बचाना है ||
जीवन के दो पाटों में, क्यूँ मुझको पिस जाना है |
नारी होना दोष मेरा, यही पुरुष ने माना है ||
नौकरी पेशे से मैं एक इंजीनियर हूँ और बैंगलोर में निवास करता हूँ| जनम-भूमि चंदौसी,उत्तर-प्रदेश है |
कवि मन बचपन से होने की वजह से यदा-कदा, अपनी लेखनी को प्रयोग में लाता हूँ | जो मन में आया बस लिख दिया | शब्दों का चमत्कार सिर्फ श्रोता ही बता सकते है | आशा करता हूँ की मेरी कविताएँ आपको पसंद आयेगी तथा आपके बहुमूल्य टिप्पड़ी और सुझाव मेरी कलम को और शशक्त बनाएंगे ताकि वो मातृभाषा की सच्ची सेवा कर सके...
आपका अपना - कवि अर्पित कौशिक
शानदार कविता है भाई।