Homeअलका सिन्हाज़िंदगी की चादर ज़िंदगी की चादर शिवम अलका सिन्हा 22/02/2012 No Comments ज़िन्दगी को जिया मैंने इतना चौकस होकर जैसे कि नींद में भी रहती है सजग चढ़ती उम्र की लड़की कि कहीं उसके पैरों से चादर न उघड़ जाए । Tweet Pin It Related Posts अख़बार की ज़मीन पर गुलमोहर नये वर्ष की पहली कविता About The Author शिवम Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.