जब शहर में दिन ढल जाये,
बलात्कारी घर से निकल आयें।
जब भी कोई अकेली लड़की नज़र आये,
वो उस पर अपनी गिद्ध सी नज़र गढ़ाए।
लड़की नज़र बचाए, घबराये,
लेकिन इन राक्षसों शर्म न आये।
ये हैं हवस के पुजारी,
इनको दुनिया कहती है बलात्कारी।
इनके ऊपर है बड़े बड़ो का हाथ,
इनको कोई सजा दे पायेगा?
है किसी की औकात?
हमें खुद ही अपनी बहु-बेटियों को बचाना होगा,
इन बलात्कारियो को मिटाना होगा।
निशान्त पन्त “निशु”
यह कविता जब देश की राजधानी नयी दिल्ली में निर्भया बलात्कार एवं हत्या कांड हुआ था तब लिखी थी।
रामावतार में राम लखन सीता आदि देवों ने अवतार लेकर राक्षसों का संहार किया| कलिकाल में बढ़ते राक्षसी प्रवृत्ति पर को रोक लगाएगा ? sukhmangal singh Mobil n-9452309611
मैंने आपकी कविता पढ़ी , काफी अच्छी लगी आपने कविता के रूप में दिल की गहराईओं को पन्नों पर उतारा है l बहुत खूब !
धन्यवाद् राजीव गुप्ता जी।