युग युग से हर मानव की
यह राम कहानी लगती है
सबको अपने आंगन की
छांव सुहानी लगती है.
पेडो की डाली पर मचली
नन्हीं जन्गली चिडिया भी
दादी मां की लोरी में
परियों की रानी लगती है.
सूरज की अलसाती किरनें
सुबह सुबह के मीठे सपने
पथरीली धरती पर गहरी
नींद सुहानी लगती है.
उजले खुलते खिलते चेहरे
मन में कितने दाग हैं गहरे
जिस्मनी रिश्तों की ज्यादा
भूख बदामी लगती है.
जर्रा जर्रा चांद गला और
सूरज पल पल खाक हुआ
लेकिन दुनियां वालो को तो
हर बात पुरानी लगती है.
अपनी किस्मत खंजर ताने
ढुंढ रही है लाख बहाने
पग पग पर दल दल गहरी
उसकी शैतानी लगती है.
यौवन का दर्पण जब बोले
बात बात में मिश्री घोले
उम्र हुई जो इस पर हावी
खार जवानी लगती है.
थोडी मदिरा तो रामबाण है
अधिक जहर बन जाती है
अच्छाइ भी हद से ज्यादा
सिर्फ नादानी लगती है.
तितली बैठी फूलों पर
फूल खिले हैं शूलों पर
कुछ पाने की खातिर
करनी कुर्बानी पडती है.
एक अकेला दीप जला
अन्धकार खो जाता है
दिवाली की रातों में भी
कन्दील जलानी पडती है.
दास दर्द में आंचल गीले
रोकर हंसकर मरकर जी ले
अपने ही कन्धों पर अपने
ख्वाबों की लाश उठानि पडती है.
शिवचरण दास
very nice
Bahut Sundar
bahut bahut dhanyavd. abhaar