कु – कु करती कोयल बगीचे में
फैला रही है बसंत की संदेशा
भौरा भी कर रहा मधुर गुंजन
मड़राने लगी है उपवन में तितलियाँ
बेर आम में आ गया बौर
सरसो , गेहू भी पक गया
बच्चे आसमा में उडा रहे पतंग
सूरजमुखी भी लाली शाम देख रहा
गूंज रही है राग बसंत
रंग उत्सव में रंगी चहुँ दिशा
खुशनुमा है सुबह और शाम
धरती महकी आई है बसंत मेला
होने लगी है जोबन पुष्प कलियाँ
नयी कोंपल से सजी है डालियाँ
गांव की प्रकृति लग रही मंधुरा
धरती महकी आई है बसंत मेला
सुन्दर स्वर्ण कमल सरोवर में खिला
दुग्ध रौशनी लेके निकली है वेनिला
महकी है चंपा चमेली से आँगन
धरती महकी आई है बसंत मेला
मंत्रमुग्ध है चाशमूम देख प्रकृति
धरती महकी आई है बसंत मेला
सजने लगी है गांव की भी गोरियाँ
पिया मिलन की आई है मधुर बेला
पुरवईया से हुई शाम रूमानी
चुनरी लहराती आ रही प्रिया
धरती महकी आई है बसंत मेला
पिया मिलन की आई है मधुर बेला
विहाना लगे प्यारी दोपहर कड़ी रसमिका
कुदरत के मेहर की है कलिका
पलास गुलरंग लेके फागुन आया
गुलमोहर से सजी है सड़क गलियाँ
@@ दुष्यंत पटेल @@