मुक्तिका:
चाहता है हृदय आज आ रे सखे.
मन मगन नित्य आँगन बुहारे सखे..
बंद आँखें खुलीं हैं अभी आज जब,
रूप की राशि नयनों के द्वारे सखे.
रोकता हूँ बहुत किन्तु रुकते नहीं,
भाव बस में नहीं हैं हमारे सखे.
मन विवश रच रहा एक रचना सहज,
प्रीति पुष्पित तुम्हारे सहारे सखे.
नेत्र ऐसे कि यह दृष्टि हटती नहीं,
विश्व सारा समाहित किनारे सखे.
हैं अधर ये सुकोमल सुगढ़ पांखुरी,
नित्य लें नाम प्रिय जो दुलारे सखे.
स्वर सुनूं जो लगे वह मुझे बांसुरी,
पूर्ण हो कामना मन पुकारे सखे.
शेष अब क्या कहूं आज निःशब्द हूँ,
अंक भर लो मुझे प्राण प्यारे सखे.
प्राण ‘अम्बर’ तुम्हारे हृदय जा बसे,
प्रेम में निज हृदय आज हारे सखे.
रचनाकार:
–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
91, आगा कालोनी सिविल लिनेश सीतापुर.
उत्तर प्रदेश २६१००१
मोबाइल ९४१५०४७०२०