दर्द के अनुबन्ध सारे पक गये हैं
चलते चलते पग हमारे थक गये हैं.
भीड थी कल साथ भारी शोरगुल
आज सारे बादलों से छट गये हैं.
नींद के आगोश मे मुस्कान से
स्वप्न सारे चेहरे पर छप गये हैं.
आदमी का कद घटा है इस कदर
आइनो के हाथ सारे कट गये हैं.
हर कदम पर अर्थ की सलीब है
रिश्ते नाते जैसे सारे खप गये हैं.
पी रहे हैं जहर तक उधार का अब
कर्ज मे ही बाल सारे पक गये हैं.
दास देखा था कभी बरसात का मौसम
आजकल तो दर्द दिल में बस गये हैं.
शिवचरण दास