तुम कब आओगे साजन?
बसंत ऋतु तो आ गई।
पाती प्रेम की पहुंची नहीं
या यादें सब बिसरा गईं।
पुष्प भ्रमर से पा रहा
सरस स्नेहिल स्पर्श।
मन मेरा बेचैन है
बीत गये कई वर्ष।
चाँद और सूरज की स्पर्धा में
सूरज ने बाजी मारी।
दिन,दोपहरी कैसे काटूँ
मैं बिरहा की मारी।
तितलियों के रंग फीके लग रहे।
गुलशन की चमक भी कम हुई।
भुजपाशों में भर लो आकर तुम
अब श्वांस गति मध्यम हुई।
मादक मौसम मधुर मिलन का
आमंत्रण है दे रहा।
श्रंगार किया तेरे लिए,यौवन
का आकर्षण ये कह रहा।
पीत प्रकृति में पवित्र प्रीत है
पर ह्रदय कली मुरझा गई।
तुम कब आओगे साजन?
बसंत ऋतु तो आ गई।
वैभव”विशेष”
NAHUT HI MANMOHAK ANDAJ ME MANMOHAK KAVYA
धन्यवाद सर
प्रोत्साहन प्रेरणा का स्त्रोत है।