नई है सदी का सफर देखिये
लहू को तरसती नजर देखिये.
इरादे अपने अटल हैं मगर
कहां टूटता है कहर देखिये.
रिसालों में सबसे उपर छपेगी
शहर मे है कर्फ्यू खबर देखिये.
जरा जो बच्चे ने तितली पकड ली
दिया उसको भी अब जहर देखिये.
रातों की स्याही घनी हो चली है
कहां होगी अब कि सहर देखिये.
यहां कौन दूध का धोया हुआ है
बना भेडियों का शहर देखिये.
किसने है लूटा हमारे चमन को
हमें है ये सारी खबर देखिये.
मगर आप आये जो नजरे झुकाये
चुना अपना आका सबर देखिये.
हाथों के पत्थर अपने गिरा दो
तुम्हारे हैं शीशे के घर देखिये.
है दास अपना सीना तो पत्थर
ये खंजर तो मागें कमर देखिये.
शिवचरण दास
वाह सर वाह। क्या गजल लिखी।।