आज हम है कल तेरी बारी आजाने को,
तब लोग नही होंगे, यह बात बताने को।
हम अपनी शौहरत में मगरूर है,
नहीं मानते यह बात समझाने को।।
इन्सानियत ही धर्म है,
और क्या धर्म है बतलाने को।
पूरी-पूरी रात गरीबी में,
बहुत कम वस्त्रों में घूमती स्त्रियाँ देखी है हमने।
शोर क्यों मचाते हो,
शौहरत की खातिर दो कपङे उतारे जाने को।।
इन्सानियत ही धर्म है,
अगर आज से भी हम लग जायें,
उन गरीबों की खातिर।
जिन्हे दो वक्ता की रोटी नही मिलती,
अपने बच्चों की भूख मिटाने को।।
तो भी तमाम उम्र लग जायेगी,
पूरी दुनिया से गरीबी हटाये जाने को।
इन्सानियत ही धर्म है,
आँख छपकते ही शौहरत से ।
गरीबी में आ सकता है,
आज महल में है,
कल झोपङे में जा सकता है।
क्या यह बात भी कम है, समझाने को।
इन्सानियत ही धर्म है,
अगर नये युग का निर्माण करना चाहते हो
तो बढने दो उन्हें जो
आगे बढना चाहते है,
कपङे या धर्म नही आङे हाथ आने को।
गरीबों का हाथ थामों, गरीबों को आगे बढाने को।।
इन्सानियत ही धर्म है।
और क्या धर्म है बतलाने को।।
एच.के.सेठ
very nice expressions…..