१९/०१/२०१५ सोमवार, माघ कृष्ण १३ सं ०२०७१-
सकल बेदना स्मृति होती ,स्मरण तुम्हारा जब होता |
विश्व बोध हो जाता है ,जिससे न कभी अनुज रोता ||
नेत्र मूद कर स्मृति करते, निराले में जाकर रहता?
त्रिपुटी और कुटी बनाकर ,ई समाधि में खाए गोता ||
वैसे तू सर्वत्र सुलभ हो ,मिलकर कौन तुम्हें विसारता |
खड़ेउ विश्व जनता में सोता ,मैं उसको पा जी रोता !!
प्रसन्नता मेरी तुममें तेरी प्रसन्नता जिससे हॉवे मेरी |
अहो तृप्त प्रानों के जीवन ‘मंगल’ प्रेम सुधा खोता ||
नये -नये कौतुक दिखलाकर ,जितना दूर मुझे लेजाता|
उतना ही दौड़ -दौड़कर मंगल हृदय नित निकट आता||
“खोल दो किवाड़ी ”
खोल दो किवाड़ी
घर आई सवारी |
सज धज विचारी
देखो है सरकारी |
काहे सोवला मुरारी
तोहका कहे त्रिपुरारी |
नंदलाल – गिरधारी
देखो सरकारी पुरारी ||
जैसो कह्यो विचारी
दीन साध्य हितकारी |
कर्म कीन्हां गिरधारी
मुरारी खोला किवाड़ी |
‘मंगल’पुकारे पुरारी
हे दीनवन्धु गिरधारी |
धर्म की है सवारी
सजी धजी सरकारी ||
मुरारी खोला किवाड़ी
देखो सरकारी पुरारी |||[email protected]