कौन आता है
मेरी बगिआ में हर रात
सुबह जब भी उठता हूँ
कलियाँ खिली मिलती हैं
पंखुड़ियाँ रंगो से भरी होती हैं
खुशबी से लिपटी होती हैं
भौरों से घिरी रहती हैं
लेकिन न कहीं
रंग की प्याली दिखती है
न कहीं ब्रश दिखता है
न कहीं मिलती है
इत्र की शीशी
चितेरा तो कभी
नज़र ही नहीं आता
निशान अपने छोड़ जाता है
भाषा सरल है पर भाव पूरा समझ मेँ नहीँ आया,