मुठ्ठी में बन्द जितनी रोटियां हैं
सत्ता की तुरप और गोटियां हैं.
पानी हमारा खून सांस उनकी हवा
उनका मुहं है और हमारी बोटियां हैं
फर्शी सलाम करते है उनको बार बार
लेकिन झुकी कमर पर ही सोटियां हैं.
मुंह का निवाला छीनकर खेलते हैं आप
वाह क्या अदा आपकी क्या शोखियां हैं.
अपने हकों से दास हम महरूम रह गये
खाने को सिर्फ वादे हैं या गोलियां हैं
शिवचरण दास