अँधेरी राहों पर ले दीपक , बचपन खोजने निकला हूँ
उठ -२ कर गिरता रहा हमेशा ,गीले कदमों से फिसला हूँ
गोद में रोता रहा रातभर ,माँ की ममता ने पाला था
भरी धूप में छिटक पसीनें आँचल मुझपर डाला था
रेंग -२ कर चलना सीखा ,पानी और मिट्टी से खेला था
बाबा ने लाकर दिया बंदर खिलौना,जिसने मुझे झेला था
बार -२ उठाकर फेंका उसको ,दाँतो ने भी बरसाया कहर
तोड़कर टाँगे चबा डाली, थू-थू करता रहा था कड़ा ज़हर
बाबा ने मारा थप्पड़ ,सुर संग निकली आँसुओ की धारा
दौड़ी हुईं माँ आयी ,घर उठा लिया आसमान पर सारा
चूम गाल सुखा दिए आँसू ,बाँहों में भर प्यार किया
साया है हरपल तुझपर,चमकती आँखों से स्वीकार किया
नीचे थी ठंडी जमीन ,उपर था खुला आसमान
चमक रहा चाँद फलक पर ,तारो से भरा था जहान
आँखों में नींद कहाँ ,माँ लोरियाँ सुनाती रही
छोडा पलको ने साथ ,निंदिया वो बुलाती रहीं
मुस्कुरा रहा था चाँद ,तारा झिलमिल -२ हँसता रहा
सोया बेखौफ निशंक ,शीतल समीर साँसो में घुलता रहा
(अश्विनी)
Nice poem