रवानी सुनाऊँ वा , जवानी सुनाऊँ|
आज अपने बचपन,की कहानी सुनाऊँ||
वर्ष चार हमने, को नीर ज्यों नापा|
कहाँ तक उसकी , दीवानी सुनाऊँ||
थीं हाथ में पुस्तक ,तैरती थी काया !
पतवार बनकर,कत कहानी सुनाऊँ ||
उ नदी की तलहटी,उफनता रहा पानी !
चढ़ी न जवानी , की कहानी सुनाऊँ ||
थी पढ़ने की ललक,औ चलने को पौरुष!
बचपन की रवानी ,की कहानी सुनाऊँ ||
Good
बधाई राकेश जी
इनके काशी- केंद्रित निबन्ध काशी -संस्कृति और उसके महत्त्व का ज्ञान प्रदान करते हैं ,जिसे जानने की इच्छा सम्पूर्ण विश्व रखता है | ऐसे में ‘सुपाथेय’ का महत्त्व बढ़ जाता है | भारतीय समाज अपने लक्ष्य की प्राप्ति गंगा, गुरू ,वेद, योग के बिना नहीं कर सकता | इसका पुनः बोध हमें ‘सुपाथेय’ कराता है |
इस ग्रन्थ को लौकिक ,-आध्यात्मिक ज्ञान -गंगा कहा जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होगी |
मेरा पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक संग्रहणीय होगी | लोककल्याणकारी होगी |
इसी शुभकामना के साथ –
हस्ताक्षर- (रविकान्तमिश्र )
वाराणसी प्रवक्ता -हिन्दी
श्री महावीर जयंती (चैत्र -पूर्णिमा ) श्री कमलाकर चौबे आदर्श सेवा विद्यालय
विक्रम संवत २०७२ इंटर कालेज ईश्वर गंगी
०४-०४-२०१५ वाराणसी
अति सुन्दर ” लाल बहादुर शास्त्री जी” के विद्यार्थी काल का सजीव चित्रण !!
निवातियाँ डी. के.जी हमने अपने साथियों के साथ हाईस्कूल -इंटरमीडिएट के दौरान सरयूं में मिलने वाली सहायक नदी जिसको पीकिया नदी कहा जाता है को तैरकर अपने कालेज ‘ राष्ट्रीय इंटर कालेज तेन्दुआइकला ‘ फैजाबाद (वर्तमान अम्बेडकर नगर )पढने जाता था| बाढ़ के समय नदी उफान पर रहती है | उसे तैरकर पार करना होता था | मेरे अनेक मित्र सर्व श्री फूलचंद सिंह जो कृषि मंत्रालय नयी दिल्ली से इसी वर्ष अवकाश प्राप्त किये ,डा ० कपिलदेव यादव (होमियो पैथ), डा ० यासीन (होमियो पैथ) आदि पढ़ते थे |
सुन्दर कविता है
रिंकी राउत जी शुक्रिया