कहानी बीज की
अभी मुझे मेरे हाल पर
जमीं पे पड़ा रहने दो
बच्चा हूँ अभी कच्चा हूँ
प्यार से मेरी ओर देख कर
मुझे जमीं की नमी में दबा रहने दो
वर्षा का आगमन होने तो दो
और रवि की किरण मुझ पे पड़ने तो दो
कृषि मौसम वैज्ञानिकों की देख रेख में
एक गरीब कृषक ने छोड़ा है जमीं पे
अंकुरित होने में ज्यादा समय नहीं लगाऊंगा
बस दो चार दिन में ही आपको
अपना कोमल चेहरा दिखाऊंगा
हवाओं के हिलोरों से झूल
अपना बचपन बिताऊंगा
मार्तण्ड के तेज के साथ
अपना विराट रूप दिखाऊंगा
मेरा ये रूप प्रकृति की महान देन होगी
जिसे पाकर इस जीवन में धन्य हो जाऊंगा
अपने को आपके समक्ष नत मस्तक होकर
कुछ आपकी भूक भी मिटाऊंगा
तभी अपने को धन्य पाऊंगा
वक्त के साथ बूढ़ा होकर
खुद ही जमीं से जुदा हो जाऊंगा
जर्जर होकर मैं भी आपसे कुछ चाहूँगा
मेरी अस्थियों को अपने घरों में सजा के रखना
तभी तो शायद स्वर्ग की सीढ़ी पाऊंगा
फिर नए बीजों से अपनी पीढ़ी संवार पाऊंगा
अपने को धन्य पाऊंगा
अनुज भार्गव
Anuj Bhargava Jee-
Sundar Rachanaa chaa gaee!
Pasha Prthama Bar Aa gaee!!
सुख मंगल जी आपका बहुत बहुत आभार अपनी प्रतिक्रिया का ।