दर्द मेरा जो सगा सा हो गया
कर्ज मेरा तो अदा सा हो गया.
मन का दर्पण तोड कर कहते रहे
हर्ज मेरा तो जरा सा हो गया.
लोग अब मिलने से ही बचने लगे
मर्ज मेरा तो खुला सा हो गया.
कौन मेरी बात का करता यकीं
वक्त मेरा तो ठगा सा हो गया.
अब वफा की बात ही बेकार है
फर्ज मेरा तो खता सा हो गया.
दास उसके नाम पर हंसते हैं लोग
जिन्दा रहकर जो मरा सा हो गया.
शिवचरण दास