तेजाब की बौछार में चेहरा बचाना चाहिये
प्यार और तकरार में सेहरा बचना चाहिये.
आंसुओं की बाढ से बहते नहीं गम के पहाड
दर्द की देहलीज पर भी मुस्कराना चाहिये.
पत्थरों को जोड्कर तो घर कभी बनते नहीं
घर बनाने के लिये खुद को मिटाना चाहिये.
मन्जिलों की राह में ठोकर हमारा पथ्य है
ठोकरें खाकर ही इंसा को संभलना चाहिये.
दुशमनी और दोस्ती में हर खता मुआफ है
वक्त की तकरार को बस भूल जाना चाहिये.
कौन जाने कब यहां अजनबी बन जाये कौन
आस की शमा को हरदम ही जलाना चाहिये.
जब हंसी कोई मिले हाथ में खन्जर लिये
वार आने से ही पहले सर झुकाना चाहिये.
दास अपने आप की उनसे मत तुलना करो
रूठने का हक उन्हें तुमको मनाना चाहिये.
शिवचरण दास